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रविवार, 8 दिसंबर 2013

बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते

२१२२   २१२२  २१२२  २
- "रमल मुसम्मन महजूफ"

मुन्तज़िर अरमाँ सजी दीवार ढा देते 
ऐ खुदा हमको अगर पत्थर बना देते

इक  समंदर हम नया दिल में बसा देते 
तुम अगर  आँसू  हमें पीना सिखा देते

आजिज़ी होती न दिल में तीरगी होती
बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते

रूह प्यासी  क्यूँ ये सहरा में खड़ी  होती
प्यार का चश्मा अगर दिल में बहा देते  

दिल मुहब्बत में धड़कता ये हमारा भी
तुम अगर उल्फत भरे नगमे सुना देते

इक फ़सुर्दा फूल चाहत  में हुए तेरी 
फिर  महक जाते अगर तुम मुस्कुरा देते 

      गमज़दा बेशक़, नहीं मगरूर हम देखो 
   लौट आते, तुम अगर मुड़ कर सदा देते

          काँपती चौखट न दीवारें हिला करती
 प्यार  के आधार पर जो घर टिका देते

तल्खियां सब “राज” दिल में दफ्न कर जाती  
 ये जमीं तो क्या सितारे भी दुआ देते
*********************

आजिज़ी=उकताहट
फ़सुर्दा=मुरझाये हुए
मुन्तज़िर=प्रतीक्षारत
तल्खियां =कडवाहट
तीरगी =अँधेरा (गम )

10 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन गज़ल अलफ़ाज़ के मायने देकर आपने गज़ल का वजन बढ़ा दिया है। शुक्रिया हमें चर्चा मंच में लाने का।

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  2. गमज़दा बेशक़, नहीं मगरूर हम देखो
    लौट आते, तुम अगर मुड़ कर सदा देते

    वाह, क्या कहने..वैसे तो हर शेर अच्छा है..बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  3. अरे वाह: मुकर्र मुकर्र..क्या बात है..?बहुत खूब !

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  4. मेरे ब्लांग मे भी आप का स्वागत है..मेरी नई पोस्ट 'आमा'

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  5. वाह बहुत उम्दा शेरों से सजी गज़ल ... क्या बात है ...

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  6. रूह प्यासी क्यूँ ये सहरा में खड़ी होती
    प्यार का चश्मा अगर दिल में बहा देते

    उर्दू अदबीअत की याद दिलाते हैं अशआर ,

    अलफ़ाज़ के मानी समझाते हैं ये अशआर।

    बढ़िया पायेदान की गज़ल।

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