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गुरुवार, 7 मार्च 2013

आज ये सबला नारी


                                                                   (दो कुण्डलियाँ एक दोहा)
                                                                            (1)
नारी अब अबला नहीं ,ना समझो कमजोर 
सहती थी जब जुर्म ये ,चला गया वो दौर 
चला गया वो दौर ,शबनम बनी है शोला 
समझ न इसको फूल ,है  बारूद का गोला
कामी, नीच , निकृष्ट, अधम  पापी व्यभिचारी 
कर देगी सब  नष्ट  , आज ये सबला नारी 

(2)
फाँसी ही बस चाहिए ,दंड नहीं कुछ और 
इन फंदो में  गर्दने ,खींचों दूजा छोर 
खींचो दूजा छोर ,मिटे ये बलात्कारी 
नहीं सहेंगे और ,जान ले दुनिया सारी 
ले कर में  तलवार ,चली अब रानी झांसी 
स्वयं करेगी न्याय ,अधम को देगी फांसी 
(दोहा) 

नारी से जीवन मिला,नारी से ही मान|
    नारी से पैदा हुआ,कर उसका सम्मान|| 
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16 टिप्‍पणियां:


  1. नारी से जीवन मिला,नारी से ही मान|
    नारी से पैदा हुआ,कर उसका सम्मान||
    बेहद सार्थक व सशक्‍त .. प्रस्‍तुति

    आभार

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  2. नमन नमन नमन
    सुन्दर प्रस्तुति आदरेया--
    शुभकामनायें-
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. नारी से जीवन मिला,नारी से ही मान,
    नारी से पैदा हुआ,कर उसका सम्मान..

    बेहद सार्थक,सशक्‍त व सुन्दर .. प्रस्‍तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति, काश यह अंतिम पंक्तियों का दोहा सारी दुनिया को समझ आजाये ...

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  5. सही कह रही हैं आप ,अधिकार माँगने से नहीं मिलता -वसूल करना पड़ता है.

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  6. बहुत ही उम्दा प्रस्तुतीकरण.

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  7. बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...

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  8. बहुत सशक्त रचना..नारी दिवस की शुभकामनायें..

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  9. सुन्दर प्रस्तुति . खुबसूरत जज्बात .बहुत खूब,

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  10. सार्थक कुण्डलियाँ ... नारी का सामान ओर उसका मान अगर नहीं हुवा .. तो वो काली भी बन सकती है ....

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  11. नारी से जीवन मिला,नारी से ही मान|
    नारी से पैदा हुआ,कर उसका सम्मान||
    ..सार्थक प्रस्तुति ..

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