ले गए मुंड काट कायर धुंध में सूरत छुपा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना जायेंगे
दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना पायेंगे
बे ज़मीर हो तुम दुश्मनी के भी लायक नहीं
कहें जानवर तो होता उनका भी अपमान कहीं
होते जो इंसा ना जाते अंधकार में दुम दबा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
बारूद के ज्वाला मुखी को दे गए चिंगारी तुम
अब बचाओ अपना दामन मौत के संचारी तुम
भाई कहकर छल से पीठ पर करते वार हो
तुम कायर तुम नपुंसक बुद्धि से लाचार हो
मृत हो संवेदना जिसकी वो खुदा का बंदा नहीं
माँ का दूध पिया जिसने वो भाव से अंधा नहीं
मूषक स्वयं शिकारी समझे सिंघों के शीर्ष चुराके
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
देश के बच्चे बच्चे को तुमने अब उकसाया है
राम अर्जुन भगत सिंह ने अब गांडीव उठाया है
मत लो परीक्षा बार बार तुम देश के रखवालो की
बांच लो किताब फिर से आजादी के मतवालों की
वही लहू है वही युवा हैं वही वतन की है माटी
वही जिगर है वही हवा है वही जंग की परिपाटी
ले रहे सौगंध सिपाही छाया में अपनी ध्वजा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के ।
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(सोच रही थी तीसरी पोस्ट अपने कश्मीर वृतांत की अगली कड़ी (गुलमर्ग गंडोला )लिखूंगी ,किन्तु आज दिल ने ये सब लिखने पर मजबूर किया
ये घटना हमारी यात्रा के दूसरे ही दिन घट गई जिस जिस जगह हम घूम आये थे वो सब रस्ते सिविलियन के लिए सील कर दिए गए ,अगली पोस्ट में यात्रा वृतांत की अंतिम कड़ी लिखूंगी )
jay hind !
उत्तर देंहटाएंjai hind.
हटाएंजोश और आक्रोश से भरी वीरों की खातिर लिखी इस रचना हेतु हार्दिक बधाई. वन्दे मातरम्
उत्तर देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
उत्तर देंहटाएंप्रभावशाली ,
उत्तर देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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जोश और आक्रोश को अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना :हार्दिक बधाई
उत्तर देंहटाएंNew post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
बहुत बढ़िया..
उत्तर देंहटाएंआहुतियाँ ये व्यर्थ न जायें,
उत्तर देंहटाएंउन्हें हलाहल का फल निश्चित
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना जायेंगे
उत्तर देंहटाएंदो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना पायेंगे
....बिल्कुल सटीक ललकार...जय हिन्द!
बिल्कुल सटीक.........
उत्तर देंहटाएंवही लहू है वही युवा हैं वही वतन की है माटी
उत्तर देंहटाएंवही जिगर है वही हवा है वही जंग की परिपाटी
ले रहे सौगंध सिपाही छाया में अपनी ध्वजा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.
ab hunkaar bharne ka hi samay hai..
उत्तर देंहटाएंkhoobsurat rachna..aisa laga jaise hindi pustak me veer ras ki kavita padh rahe hai..
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना जायेंगे
उत्तर देंहटाएंदो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना पायेंगे ..
बिलकुल ऐसा होना जरूरी है अब ... देश के कर्णधार कब जागेंगे ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
उत्तर देंहटाएंआपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-01-2013) के चर्चा मंच-1130 (आप भी रस्मी टिप्पणी करते हैं...!) पर भी होगी!
सूचनार्थ... सादर!
भर रही हुंकार सरहद लहू का चाका सजा के । ऐसी सज़ा मिले कि आगे ऐसी जुर्रत ना करने पाये ।
उत्तर देंहटाएंटीका पढें चाका के स्थान पर .
उत्तर देंहटाएंhello friend good moring
उत्तर देंहटाएंprabhwshali......
उत्तर देंहटाएंजनजन की हुंकार लिए है ये रचना .दिग्विजय सिंह जी अब भी ऐसे दोस्त चाहतें हैं जो छल बल से कोहरे का लाभ उठाके करतें हैं वार .पूछते हैं ज़नाब आपको कैसा पड़ोस चाहिए ?पडोसी चाहिए दोस्त
उत्तर देंहटाएंया दुश्मन .आतंकी ओसामा बिन लादेन को लादेन जी कहने वाले यही हैं श्रीमान .आपने कहा था इन्हें भी सम्मान पूर्वक दफनाया जाना चाहिए था .क्या करें इन जयाछंदों का,सेकुलर बन्दों का अपने
देश में ?कितनी अजीब बात है कल तक था वह भी इंसान आज सेकुलर हो गया .
बेहद ओजस्वी और प्रेरणादायी रचना!
उत्तर देंहटाएंसामयिक, सटीक, मार्मिक चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
उत्तर देंहटाएंमृत हो संवेदना जिसकी वो खुदा का बंदा नहीं
उत्तर देंहटाएंमाँ का दूध पिया जिसने वो भाव से अंधा नहीं
bahut hi prabhavshali rachana .........teekha ooj ....badhai Rajesh ji .
सार्थक ओजपूर्ण रचना देने के लिए आभार !!
उत्तर देंहटाएंsunder prastuti.
उत्तर देंहटाएंSach kaha AApne
उत्तर देंहटाएंThanks
Sach kaha AApne
उत्तर देंहटाएंThanks
very good poem
उत्तर देंहटाएंJab aap ki ye rachan padi to dil mai lahoo ka uabal aagya
उत्तर देंहटाएंShandar
उत्तर देंहटाएंKamal ke shabdo ka pryog hai .deshbhakti ke is jajbe ko salam
उत्तर देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति है वीर रस कि .....बधाई हो ....
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