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गुरुवार, 17 जनवरी 2013

भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के


ले गए मुंड काट कायर धुंध में सूरत छुपा के 
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना  जायेंगे 
दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना  पायेंगे
बे ज़मीर हो तुम दुश्मनी  के भी लायक नहीं
कहें जानवर तो होता उनका भी अपमान कहीं
होते जो इंसा ना जाते अंधकार में दुम दबा के 
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
बारूद  के ज्वाला मुखी  को दे गए चिंगारी तुम
अब बचाओ अपना दामन मौत के संचारी तुम 
भाई कहकर  छल से पीठ पर करते वार हो
तुम कायर तुम नपुंसक   बुद्धि से लाचार हो
मृत हो संवेदना जिसकी वो खुदा का बंदा नहीं 
माँ का दूध पिया जिसने वो भाव से अंधा नहीं 
मूषक स्वयं शिकारी समझे सिंघों के शीर्ष चुराके  
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
 देश के बच्चे बच्चे को तुमने अब उकसाया है 
राम अर्जुन भगत सिंह ने अब गांडीव उठाया है 
मत लो परीक्षा बार बार तुम देश के रखवालो की 
बांच लो किताब फिर से आजादी के मतवालों की 
वही  लहू है वही  युवा हैं वही वतन की है  माटी 
वही जिगर है वही हवा है वही जंग  की परिपाटी 
 ले रहे सौगंध सिपाही छाया में अपनी ध्वजा के 
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के
**********************************************
(सोच रही थी तीसरी पोस्ट अपने कश्मीर वृतांत की अगली कड़ी (गुलमर्ग गंडोला )लिखूंगी ,किन्तु आज दिल ने ये सब लिखने पर मजबूर किया 
ये घटना हमारी यात्रा के दूसरे  ही दिन घट  गई जिस जिस जगह हम घूम आये थे वो सब रस्ते सिविलियन के लिए सील कर दिए गए ,अगली पोस्ट में यात्रा वृतांत की अंतिम कड़ी लिखूंगी )

30 टिप्‍पणियां:

  1. जोश और आक्रोश से भरी वीरों की खातिर लिखी इस रचना हेतु हार्दिक बधाई. वन्दे मातरम्

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  2. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

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  3. जोश और आक्रोश को अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना :हार्दिक बधाई
    New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
    New post: कुछ पता नहीं !!!

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  4. आहुतियाँ ये व्यर्थ न जायें,
    उन्हें हलाहल का फल निश्चित

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  5. नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना जायेंगे
    दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना पायेंगे

    ....बिल्कुल सटीक ललकार...जय हिन्द!

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  6. वही लहू है वही युवा हैं वही वतन की है माटी
    वही जिगर है वही हवा है वही जंग की परिपाटी
    ले रहे सौगंध सिपाही छाया में अपनी ध्वजा के
    भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के ।
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.

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  7. ab hunkaar bharne ka hi samay hai..
    khoobsurat rachna..aisa laga jaise hindi pustak me veer ras ki kavita padh rahe hai..

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  8. नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना जायेंगे
    दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना पायेंगे ..

    बिलकुल ऐसा होना जरूरी है अब ... देश के कर्णधार कब जागेंगे ...

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-01-2013) के चर्चा मंच-1130 (आप भी रस्मी टिप्पणी करते हैं...!) पर भी होगी!
    सूचनार्थ... सादर!

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  10. भर रही हुंकार सरहद लहू का चाका सजा के । ऐसी सज़ा मिले कि आगे ऐसी जुर्रत ना करने पाये ।

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  11. टीका पढें चाका के स्थान पर .

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  12. जनजन की हुंकार लिए है ये रचना .दिग्विजय सिंह जी अब भी ऐसे दोस्त चाहतें हैं जो छल बल से कोहरे का लाभ उठाके करतें हैं वार .पूछते हैं ज़नाब आपको कैसा पड़ोस चाहिए ?पडोसी चाहिए दोस्त

    या दुश्मन .आतंकी ओसामा बिन लादेन को लादेन जी कहने वाले यही हैं श्रीमान .आपने कहा था इन्हें भी सम्मान पूर्वक दफनाया जाना चाहिए था .क्या करें इन जयाछंदों का,सेकुलर बन्दों का अपने

    देश में ?कितनी अजीब बात है कल तक था वह भी इंसान आज सेकुलर हो गया .

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  13. बेहद ओजस्वी और प्रेरणादायी रचना!

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  14. सामयिक, सटीक, मार्मिक चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  15. मृत हो संवेदना जिसकी वो खुदा का बंदा नहीं
    माँ का दूध पिया जिसने वो भाव से अंधा नहीं


    bahut hi prabhavshali rachana .........teekha ooj ....badhai Rajesh ji .

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  16. सार्थक ओजपूर्ण रचना देने के लिए आभार !!

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  17. Jab aap ki ye rachan padi to dil mai lahoo ka uabal aagya

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  18. बेहतरीन प्रस्तुति है वीर रस कि .....बधाई हो ....

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