कश्मीर के भारी बर्फ में ट्रेकिंग का मजा
आज सुबह सब को जल्दी जगा दिया गया ट्रेकिंग जो करना था बड़ों और बच्चों में पूर्ण उत्साह था जंगल का एक ऊबड़ खाबड़ रास्ता अच्छी खासी चढ़ाई कहीं कहीं कुछ बर्फीले पानी के झरने कहीं कोई नदी ,तीन चार फीट बर्फ में दबा रास्ता कहीं कहीं गहराई अधिक होने से बर्फ का अनुमान नहीं कितने फीट होगी ,उसमे ट्रेकिंग करने की योजना बनी सेफ्टी का सब सामान हमारे पास था पूर्णतः सहायता साथ थी इस लिए बच्चों को साथ ले जाने में कोई दिक्कत नहीं आई क्यूँ की दो बच्चे जो साढ़े तीन साल के हैं उन्हें तो नीचे भी नहीं खड़ा कर सकते थे उन्हें कंधों पर ही ले जाना पड़ा ,भालू और चीते उस जंगल में कभी भी दिखाई दे सकते थे पर डर नहीं था सिक्योरिटी/ गनमेन साथ थे ।हमे कुछ सामान दिया गया जैसे ,स्नो गोगल ,स्नो बूट ,छड़ी ग्लब्स इत्यादि मेरे साइज के बूट नहीं मिले 5 न इस लिए मेरे लिए मुश्किल हुआ पर बाद में सबने बूट पहनने से मना कर दिया क्यूंकि सेना के बूट बहुत भारी होते हैं हम जैसे पहनकर एक कदम भी नहीं चल सकते दो बन्दों ने रास्ते में खाने पीने का सामान भी लिया जंगल में प्रवेश तक गाड़ियों ने छोड़ दिया और फिर हुई हमारी ट्रेकिंग शुरू ,सुबह के नो बजे थे सूरज अच्छे से निकला था अर्थात हमारे भाग्य से मौसम बहुत अच्छा था ,ख़ुशी और उत्साह में ट्रेकिंग शुरू की देखिये चित्र -----
आगे रास्ता और कठिन होता गया --देखिये झरने कैसे जमे हुए हैं
बेटे के साथ मैं
नीचे देखिये जमी हुई नदी जिसे पार करना था ----इसे पार करते हुए जूतों में बर्फीला पानी भी भर गया था
इसके ऊपर एक पतला सा लकड़ी का फट्टा पड़ा था उस पर बर्फ के ऊपर से चलना था ---देखिये चित्र ---
बच्चे कितने खुश हैं
यहाँ इतनी ज्यादा बर्फ थी की बैठ कर फिर सहायता से ही उठा गया ---
यहाँ मेरा धूप का चश्मा भी गिर गया था जो लौट के आते हुए वहां के ईमानदार लोकल निवासी जो सेना में पोटर का काम करते हैं गर्मियों में भेडें चराते हैं ने दे दिया ।
देखिये नन्ही इनिका बहुत दूर तक तो नानू के काँधे पर ही गई
--जो हमारा टारगेट था वो अभी एक घंटे की दूरी पर था वहां जा तो सकते थे पर लौटते हुए खतरा था क्यूंकि जितनी देर होती बर्फ जम कर शीशा बन जाती है अतः ढलान पर उतरना बहुत कठिन था है इसी लिए आधे रास्ते में ही पड़ाव डाला गया ,सभी के जूतों में पानी भरा था उंगलियाँ काटने जैसी हो रही थी अतः उपचार की एक दम जरूरत थी जो हमें मिल गया ---
नदी जम चुकी थी पर पैर रखना मजबूरी थी कांच टूटते ही पानी भर गया जूतों में
देखिये जहां जूतों में पानी भरा ----उपचार हो रहा है
उपचार करते हुए गर्म पानी में नमक चाय का पानी ,केसर मिला कर तब में डाल कर पैर 15 से20 मिनट डुबोए और वहां गर्म गर्म चाय और सूजी का ड्राई फ्रूट्स के साथ हलुए का मजा लिया ---
एक ख़ास बात और थी हमें ऊपर जाकर शूटिंग का मजा भी लेना पर किन्तु बीच में पड़ाव करने के कारण शूटिंग का बन्दों बस्त वहीँ कर दिया गया सभी ने ट्राई किया मेरे दो राउंड सफल हुए।
देखी चित्र ---
वापस लौटने की जल्दी थी पर मैं समझ नहीं प् रही थी की इतनी चिंता वापस लौटने की वहां के लोग क्यूँ कर रहे हैं ,जो मैं जल्दी ही समझ गई थोड़ी थोड़ी बर्फ शीशा बन चुकी थी ना छड़ी सहायता कर रही थी ना जूते सभी एक दो बार लुढ़क चुके थे ,मैं कितनी बार लुढकी बताने में भी शर्म आएगी ,मुझे तो संभालने वाले भी लुढ़क रहे थे फोटो ग्राफी भूल गए थे आधे घंटे का सफ़र डेड घंटे में किया वापस आते आते नदी में पानी भी अधिक हो गया उसके ऊपर के फट्टे पर बर्फ शीशा बन गई उस पर चलना ना मुमकिन था अतः घुटनों तक पानी से निकलना पड़ा ,पैर कहाँ हैं पता ही नहीं था शाम होने लगी थी खतरा ही खतरा था ऊपर से नीचे तक
वो ऐसी जगह थी जहां दुश्मनों की और से कभी भी शेलिंग हो जाती है हमारे आने के दो दिन बाद ही सुनी गई ,कुल मिलाकर एक थ्रिलिंग ट्रेकिंग को हमने अंजाम दिया ,पर सबसे बड़ा अनुभव ये हुआ की हमें पता चला जब हम सर्दियों में ऐ सी रूम में नर्म नर्म रिजाईयों में दुबके बैठे होते हैं हमारी सेना किन परिथितियों से गुजर रही होती है हम सपने में भी नहीं सोचते बर्फ से कभी कभी उन जान बाजों के पैर इतने खराब हो जातें हैं की ला इलाज होने के कारण पैर तक काटने पड़ जाते हैं ,बर्फ में सूरज की रौशनी की चमक से आँखे खराब हो जाती हैं ।
यह सब देखते हुए एक कविता दिल में जन्म ले रही थी उसका भी मजा लीजिये --
यह सब देखते हुए एक कविता दिल में जन्म ले रही थी उसका भी मजा लीजिये --
उड़ेल दिए क्या नमक के बोरे ,या चाँदी की किरचें बिछाई
लटके यहाँ- वहां रुई के गोले क्या बादलों की फटी रजाई
मति मेरी देख- देख चकराई |
डाल- डाल पर जड़े कुदरत ने जैसे धवल नगीने चुन- चुन कर
लगता कभी- कभी जैसे धुन रहे रूई को अम्बर में धुनकर
नग्न खड़े दरख्तों को किसने श्वेत- श्वेत पौशाकें पहनाई
मति मेरी देख देख चकराई |
सुन्न कम्पित नीर दूधिया संग लेकर बहती झेलम की धारा
तटों पर श्वेत आइस क्रीम सी बिखरी शून्य हुआ तल का पारा
जाने किसने झीलों
को पारदर्शी कांच की चुनरी उढाई
मति मेरी देख- देख चकराई
सड़कें धुली- धुली क्षीर से हिम रजत से पर्वतों के ढके बदन
उज्जवल ,धवल चांदी उबटन से लिपटे हों जैसे उनके वदन
किरणों ने मस्तक जो चूमा उनका
रवि की आँखें चौंधियाई
मति मेरी देख देख चकराई
अब यह पोस्ट यहीं बंद करती हूँ अगली पोस्ट पर मैं आप सब को चाँद पर ले जाऊँगी हाहाहा सच में ऐसा ही अनुभव हुआ गुलमर्ग से ऊपर गंडोला फेस 2 में जाकर !!!!(चित्र बहुत हैं काश सब दिखा पाती ,कुछ सेंसर्ड भी हैं )
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वाह ! स्नो ट्रेकिंग देखकर और पढ़कर अत्यंत रोमांच का अनुभव हुआ। ऐसा लगा जैसे हम स्वयं ही बर्फ पर चल रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत मनोरम दृश्य हैं। आप वर्जित क्षेत्र तक पहुँच पाए, यह भी एक अनुपम अनुभव रहा।
बधाई और शुभकामनायें।
बहुत सुंदर .... आनंद लीजिये ट्रैकिंग का .... अपना ख्याल रखिएगा .... कविता भी बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर कश्मीर, हिमाचल व उतराखण्ड भी इससे कम नहीं है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब चित्र .. गज़ब का वर्णन ओर खूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंआज तो सब कुछ है एक ही पोस्ट में ...
मकर संक्रांति की बधाई ...
राजेश जी ...आनन्द आ गया ...पूरा पढ़ा और चित्रों के साथ मुझे भी लगा कि आपके साथ हूँ... अब तो मिल कर बात होगी..उम्दा
जवाब देंहटाएंरचना उम्दा ...प्रतिबिम्ब बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंऔर वर्णन इतना उम्दा कि लगा हम आपके साथ है.... मेरी पहली टिपण्णी नजर नहीं आई....आपको मकरसक्रांति पर हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहतरीन दृश्यों को कैद किया है आपने ... और साझा भी
जवाब देंहटाएंअनुपम एवं रोचक
मकरसक्रांति पर शुभकामनाएं
खुबसूरत चित्र देखकर ऐसा लगा की हम खुद ही बर्फ पर चल रहे है, कविता भी बहुत अच्छी है
जवाब देंहटाएंNew post: कुछ पता नहीं !!!
New post अहंकार
सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
राजेश कुमारी जी, आपकी कश्मीर की यात्रा के सुन्दर वर्णन से ऐसा लगा की हमने भी आपके साथ कश्मीर घूम लिया सुन्दर फोटो और सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंयह टिप्पणी कल्पना अत्रे द्वारा की गई है
सच है, ऐसी कड़ाके की ठंड में आपको बाहर निकला देख कर हमें कँपकपी हो आयी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रमय शब्द चित्र.
जवाब देंहटाएंक्षमा करें, ब्लाॅग में ६०० पिक्सल साईज के फोटो ही अपलोड़ करिये इससे टू जी, मोबाईल नेट व कम गतिवाले इंटरनेट प्रयोक्ता भी आपके ब्लाॅग में सहजता से आ सके.
जवाब देंहटाएंमैं टू जी स्लो नेट उपयोग करता हूं, इस ब्लाॅग को फालो कर रहा हूं अब नियमित स्प से आपके पोस्ट मुझे गूगल रीडर से मिलते रहेंगें और बिना टिप्पणी हाजिरी के हम आपको पढ़ते रहेंगें. धन्यवाद..
संजीव तिवारी जी मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आपके परामर्श पर विचार करुँगी ,पोस्ट पर अपने विचार व्यक्त करने हेतु हार्दिक आभार
हटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति,,,सुंदर फोटोग्राफ्स,,,,,मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंrecent post: मातृभूमि,
साहसिक रोमांचक रचना और दूधिया गाथा कहती रचना दोनों शुभ्र धवल .बधाई .
जवाब देंहटाएंसुंदर फोटोग्राफ्स ,रोमांचक रचना ..मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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