जीवन की ये डोर पल में टूट जायेगी
किसको पता था प्रकृति रूठ जायेगी !
कंही सुनामी कंही भूकंप
हर ओर मच रहा हडकंप
क्षण भर में चल अचल संपत्ति
यूँ हाथों से छूट जायेगी
किसको पता था प्रकुर्ती रूठ जायेगी !
विषमताओं के इस दौर में कैसे हाथ बताऊँ मै
जख्मों से तड़पते सीनों पर कैसे मरहम लगाऊं मै
शब्दों के कान्धों से कैसे
अश्कों की अर्थी उठाऊं मै!!
अथाह दुखों के सागर मै
एक म्रदुल बूँद बन जाऊं मै!!
सराहनीय लेखन के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं======================
प्रकृति ने जापानी नागरिकों पर मुसीबतों का पहाड़ तोड़ दिया है। आपकी दुआओं के साथ मेरी दुआ भी जुड़ जाय। वहाँ विपत्तियों बादल छटें जनजीवन पुन: सामान्य हो जाय।
========================
महकती रहे यह सतत भाव-धारा।
जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा ॥
========================
-डॉ० डंडा लखनवी