जो पुष्पों के संग ही खेला
काँटों की चुभन वो क्या जाने ,
सेंकता है बर्फ से जो अपने हाथ
अग्नि की तपन वो क्या जाने !!
जो नृप बनकर ही जीता रहा ,
रंक का दमन वो क्या जाने
सर जिसका कभी झुका न हो ,
हरी का नमन वो क्या जाने !!
झोली कभी जिसकी खाली न हो ,
पाने की लगन वो क्या जाने !!
सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
वाह..!!! बहुत खूब..!!
जवाब देंहटाएंइस मखमली गजल का तो जवाब नहीं!
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास है !
जवाब देंहटाएंसत्य कहा आपने. आभाव ही जिन्दगी में किसी वस्तु के मूल्य को समझा पाते हैं.
जवाब देंहटाएंएक सफल प्रयास.....
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने.....
जवाब देंहटाएंझोली कभी जिसकी खाली न हो ,
पाने की लगन वो क्या जाने !