परिणय डोरी
हिय कँवल कब तक खिलेंगे लोचन की बंद तिजोरी में
तू ले चल मुझको संग पिया अब बाँध परिणय डोरी में!!
सुध बुध भूला मन थके नयन बाँट जोहेते राहों में
तू ले चल मुझको डोली में सम्मोहन की बांहों में !!
पायल छेडे कंगना छेडे सखियाँ छेडे बरजोरी में
अंगीकार करो सर्वस्व समर्पण क्या रखा है चोरी में
प्रीत करे और मर्म ना जाने क्या बात है चाँद चकोरी में
तू ले चल मुझको संग पिया अब बाँध परिणय डोरी में !!
बहुत ही सुन्दर तथा हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है!
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माँ सब जग की मनोकामना पूर्ण करें!
जय माता दी!