सोलहवां सावन
न जाने कब सोलहवां सावन आया
रिम झिम बरसे बादल
हाथों की चूड़ी लगी कसने
औछा पड़ने लगा आँचल !
कब गुडिया लगी चिढाने
ओर गुड्डे लगे मन को भाने
दादी के किस्से फीके पड़ गए
प्रेम कहानी लगी रिझाने !
कब आँखों से नींदे लुट गई
ओर सपनो ने घर बसाया
लोरी का अब चला न जादू
जाने क्यों ये मन बौराया !
सयाने हुए कब संगी-साथी
ओर मेरी बचपन की सखियाँ
छूटी लुकाछिपी आँख मिचौली
भाने लगी कानों की बतियाँ !
फिर एसा वो दिन भी आया
माँ का आँगन हुआ पराया
वो लम्हे वो कल की बातें
बन गई मन की मीठी यादें !!
प्रीत की और रीत की मनुहार की बातें करें!
जवाब देंहटाएंप्यार का मौसम है आओ प्यार की बातें करें!!
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बहुत सुन्दर रचना!
प्रशंसा के लिए शब्द छोटे पड़ रहे हैं!