चंदा साजन
रजत हंस पर होकर सवार
रात गगन वत्स छत पर आया,
देख वर्च लावण्या उसका
सुन री सखी वो मेरे मन भाया !!
वो समझा मैं सोई थी
मैं सुख सपनो में खोई थी
चूम वदन मेरा उसने
श्वेत किरण का जाल बिछाया,
हिय कपोत उसमे उलझाया
सुन री सखी वो मेरे मन भाया !!
खुले थे चित्त कपाट मेरे
वो दबे पाँव चला आया
अधरों की अधीरता सुन आली
साजन कह कर दिल भरमाया
सुन री सखी वो मेरे मन भाया !!
उसके बिन अब तो रह न सकुंगी
तूने देखा तो डाह करूंगी
चांदी की पालकी लाएगा
मुझे ब्याह ले जायेगा
मेरे लिए उसने गगन सजाया
पग पग तारों का जाल बिछाया
सुन री सखी वो मेरे मन भाया !!
सुन्दर प्रस्तुति
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