उस दिन की याद आई ........
पंद्रह जून २०१३ उमंगों के पंख लेकर हम तीन सखियाँ डॉ नूतन
,कल्पना बहुगुणा और मैं हल्द्वानी
कविसम्मेलन में पँहुची|वहाँ सभी साहित्कारों से साक्षात मिलने की ख़ुशी छुपाये नहीं
छुप रही थी आभासी दुनिया से निकल कर हम सबसे साक्षात् मिल रहे थे |फिर कविसम्मेलन
,मुशायरे में सबकी कलम का हुनर देखा सुना,अपनी भी रचनाएँ प्रस्तुत की |कुल मिलकर
बहुत सार्थक सम्मलेन रहा|
बाहर हलकी सी बूँदा बांदी हुई तो लगा मौसम कितना खुशगवार
हो गया|एक और दिन हमारे पास था सो हमने नैनीताल का रुख किया| बाहर की दुनिया से
बेखबर ,मौसम के खतरनाक मिजाज़ से बेखबर हम तीनों टेक्सी से गप्पे मारती हुई उन्मुक्त उमंगों से भरपूर वादियों का नजारा लेती हुई चली जा रही थी लग रहा
था बाहर काली-काली घटायें मौसम को सुहाना बना रही हैं मानो हमारा स्वागत कर रही
हैं,हमने बरसात पर आधारित कितने गाने भी गाये |
आर्मी के होली डे गेस्ट हाउस में
मैंने अपने स्टे का बंदोबस्त किया हुआ था,जैसे जैसे हम नैनीताल में प्रवेश कर रहे
थे मौसम अपना रंग बदलता जा रहा था काली घटाओं ने और ज्यादा काजल लगा लिया था हलकी
बूँदा बंदी ने भारी बारिश का रूप धर लिया था जो हमारे मन के बच्चे को अन्दर से
गुदगुदा रहा था बाहर बारिश में भीगने का मन कर रहा था तो वह प्रोग्राम बाद में
बनाया क्यूंकि पहले गेस्ट हाउस में सामान रखना था |गे
स्ट हाउस “होलीडे होम”एक दम
नैनी झील के सामने था मालरोड से लगा हुआ |हम वहां अपने कमरे में सामान रख कर माल
रोड पर घूमने बाहर निकल आये| हमे रिसेप्शन पर हिदायत दी गई की जल्दी वापस आना है
मौसम ठीक नहीं है|सबसे पहले हमने गाड़ी में बैठे- बैठे ही रेनबो कलर यानी सतरंगी
कलर के छाते खरीदे |
कुछ दूर गाड़ी ने हमे छोड़ दिया और हम मालरोड साइड आ गए और पैदल ही तेज बारिश में
घूमे केवल गीला होने से सिर ही बचे हुए थे तेज हवाओं के सामने छाते भी काम नहीं कर
रहे थे शाम के छः बजे ही रात लगने लगी थी झील ऊपर तक लबालब भरी हुई थी| हम पूरी
मस्ती के मूड में थे क्यूंकि तब तक हमे कुछ पता नहीं था की ये मौसम पहाड़ी
क्षेत्रों में क्या तबाही ला रहा था और लाने वाला था |मालरोड पर ऐसे मौसम में भी
कुछ शापिंग की जिसमे नैनीताल की फेमस रंगबिरंगी आकर्षक डिजाइनों में केंडिल खरीदी
|
चाय पीने का मन कर रहा था ,सब जगह पता चला की दूध नहीं है
फिर भी एक जगह देखा कॉफ़ी की दुकान थी लकीली वहां गर्म- गर्म कॉफ़ी मिली हमने उसका भरपूर लुत्फ़ उठाया सामने ही
भुट्टे वाला था नूतन जी तुरंत भागी और भुट्टे ले आई| उस वक़्त हम तीनो नन्ही नन्ही
बच्चियां बन गई थी जिनको किसी खिलौने की दुकान में लूट मचाने की छूट मिल गई हो |
अँधेरा ज्यादा घिरने लगा और ठण्ड के कारण
हमारी कंपकंपी बंध गई तो वापिस लौटने लगे|
थोड़ी घबराहट तब बढ़ी जब हम में से कोई भी
अपने फोन से घर बात करने में असफल हुई सोचा क्या हुआ हम सभी के फोन डेड क्यूँ हो
गए ?फिर गेस्ट हाउस पँहुचे तो चाबी लेने रिसेप्शन पर पता चला की कई जगह पर बादल फटे
केदारनाथ में तबाही आई है,सुन ही रहे थे कि वहां की लाईट भी चली गई जैसे तैसे
उन्होंने कमरे तक पँहुचाया| कमरे में उस वक़्त कोई केंडल भी नहीं थी रिसेप्शन का
फोन काम कर रहा था सो डिनर का आर्डर दिया और केंडिल मंगाई किन्तु बारिश इतनी तेज
थी की कोई भी बाहर निकल नहीं रहा था हमने अपनी डिजाइनर केंडिल लगाईं और आराम किया
गपशप करने के बाद मैंने अपने मोबाइल पर गाने लगा दिए ,मस्ती के मूड में तो थे ही
घबराहट को दूर भी करना था तो कल्पना जी और नूतन जी ने पाहड़ी डांस किया जिन्हें
मैंने भी ज्वाइन किया खूब हँसी ठिठोली की पर बीच में जैसे ही घर फोन करते तो
कोंटेक्ट न होने की वजह से थोड़े मायूस भी हो जाते फिर हमने केंडल लाईट डिनर किया|
उस बीच नूतन जी के चेहरे पर अचानक परेशानी के भाव देखे तो पता चला उनका परिवार
(नूतन जी के पिता ,बेटा ,बहन बहनोई उसके दो बच्चे )जो देहरादून से श्रीनगर (गढ़वाल
)जा रहे थे वो रास्ते में लेंड स्लाइड में फँस गए हैं |बाई चांस नूतन जी का एक फोन
काम कर गया|उनकी पूरी फेमिली से कोई कान्टेक्ट नहीं हो पा रहा था नूतन जी सभी
रिश्तेदारों को फोन मिलाती रही मगर कुछ पता नहीं चल रहा था |हमने भी नूतन जी के
फोन से अपने घर सूचना दे दी कि हम सकुशल
हैं क्यूंकि हमारे घर वालों के भी छक्के छूट रहे थे जब की हमे इस तबाही का
इतना ज्यादा इल्म नहीं था क्यूंकि गेस्ट हाउस का टीवी लाईट सब चला गया था ,किन्तु
रिसेप्शन पर आर्मी वालों को सब अपडेट मिल रहा था |
अब रात भर नूतन जी अपने परिवार का पता लगाने में लगी रही
बीच बीच में कई बार रोई भी
तो हम तीनो उदास हो गए और भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि
सब ठीक हो जाए |इस तरह वो रात गुजरी |सुबह चार बजे नूतन जी का अपने बेटे से
कान्टेक्ट हो पाया की वो सब सही सलामत श्री नगर पँहुच गए हैं |उसके बाद हम तीनो के
चेहरों पर मुस्कराहट आई |सुबह उठे तो देखा हमारे कमरों में पानी घुस आया जो कहीं
छत से नहीं दीवार से नहीं नीचे जमीन से
निकल रहा था कहते हैं ऐसा पहली बार हुआ कि इस तरह कमरों में पानी आ गया |
फिर और भी
घबराहट होने लगी|उस दिन काठ गोदाम से
हमारी शाम को ट्रेन थी |अतः हमने दिन में
नैनीताल घूमते हुए रेलवेस्टेशन पँहुचने का प्लान बनाया |रिसेप्शन पर हमे सतर्कता
बरतने की हिदायत दी गई तथा एक हेल्पलाइन नंबर भी दिया क्यूंकि काठगोदाम पँहुचने के
दो रास्ते बंद हो चुके थे केवल एक ही खुला था जो घूम कर जाना था तथा दूर भी बहुत
पड़ रहा था किन्तु हमे अपनी ट्रेन नहीं छोडनी थी अतः हम बाहर निकल आये |
हमारे
ड्राईवर ने गाड़ी से ही सभी झीलों के दर्शन कराये जहाँ उपयुक्त समझा थोड़ी देर के
लिए बाहर निकले खूब फोटो खींचे विडियो बनाई|झील के किनारे लंच किया सोच रहे थे कि
काश ये बोट खुली होती तो बोटिंग भी करते किन्तु सभी झीलें खतरे के निशान से ऊपर
थी| वापस रेलवेस्टेशन पँहुचने के रास्ते में भारी लेंड स्लाईड हो रही थी जो उसी
वक़्त शुरू हुई हमारा ड्राईवर कुछ ठिठका पर हमने कहा निकाल दो और उसने एक्सीलेटर पर
पैर जमा दिए हमे पीछे मुड़कर देखा तो कीचड़ का सैलाब धग धग करके रोड पर बिखर गया और
पीछे के वाहन वहां जस के तस रुक गए |
ड्राईवर का मुख भी सफ़ेद हो गया बोला मैडम आज
तो आप लोगों के साथ मैं भी गया था हमारी बोलती कुछ वक़्त के लिए रुक गई संज्ञा
शून्य से हो गए फिर हमने प्रभु का शुक्रिया अदा किया कि हम सकुशल अपनों के पास
पँहुच जायेंगे किन्तु घर आकर पता चला कि कितनो के अपने अपनों से छूट गए जो आज तक नहीं मिले.... इस त्रासदी को झेल रहे
सभी परिवारों को भगवान् शक्ति दे मृतकों की आत्माओं को शान्ति दे ...............
हे ईश्वर दुबारा ऐसी आपदा कभी न आए।
जवाब देंहटाएंवह एक भयानक घटना थी जिसके ज़ख्म सालों साल दर्द देते रहेंगे ।
जवाब देंहटाएंभगवान का शुकर है की आप लोग सही सलामत आज अपनों के पास हैं.
जवाब देंहटाएंसच ऐसे त्रासदी किसी को देखने को न मिले।
जवाब देंहटाएंईश्वर शक्ति दे मृतकों की आत्माओं को शान्ति दे
पहाड़ के मिजाज़ का पता नहीं रहता...पल भर में बदल जाता है...
जवाब देंहटाएंआप लोग सकुशल लौट आये कृपा थी ईश्वर की। उस वक्त जिनके अपने गए ईश्वर उन सबको शक्ति दे इस बिछोह को सहने की।
जवाब देंहटाएंएक रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना थी वो ... इस्वर कृपा करे ऐसा दुबारा न हो ...
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