कुण्डलिया
चंदा बरसाता अगन ,सूरज देखो ओस
मूँछ एँठ जुगनू कहे ,चल मैं आया बॉस
चल मैं आया बॉस ,शमा को नाच नचाऊं
कर लूँ दो-दो हाथ ,शलभ को प्रीत सिखाऊं
मेरी देख उड़ान ,भाव भँवरे का मंदा
तितली करती डाह ,मिटे फूलों पर चंदा
||तीन दोहे||
दिल सागर में आज क्यों ,उठे प्रेम का ज्वार|
देकर लाल गुलाब को ,करते हैं इजहार||
परसों नभ को दिल दिया,कल धरा को रोज|
चाँद आज मन में बसा,रवि को किया प्रपोज||
कलिका से प्रोमिस करें ,तितली को दें डेट|
इन भँवरों का क्या धरम ,कहें सुमन से वेट||
वाह मस्त हैं दोहे ... प्रेम दिवस जो आ रहा है ...
जवाब देंहटाएंबड़े ही सुन्दर दोहे..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोहे ..!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: पिता
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2014) को "गाँडीव पड़ा लाचार " (चर्चा मंच-1521) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कलिका से प्रोमिस करें ,तितली को दें डेट|
जवाब देंहटाएंइन भँवरों का क्या धरम ,कहें सुमन से वेट|
बहुत सुंदर भाव। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
सुन्दर दोहे..
जवाब देंहटाएंaapke dohe bahut hi lajawab hai hum ise facebook par post kar rahe hai
जवाब देंहटाएंManoj Ashtikar
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