माँ तेरी इन आँखों में क्यूँ दोरंगी तस्वीर दिखे
इक नदिया से मोती बहते दूजे से क्यूँ नीर दिखे
खुश रह ले तू इस जीवन में ऐसे क्यूँ हालात नहीं
गम को पीकर हँसती है तू पर बातों में पीर दिखे
बेटी अपनी सावित्री या सीता का क़िरदार अगर
दूजे की बेटी में
उनको फिर क्यूँ लैला हीर दिखे
भारत अपनी आजादी की जब दिखलाऐ शान यहाँ
आँखों पर पट्टी तेरे
क्यूँ पैरों में जंजीर दिखे
नारी को पूजा करते थे पहले जग के लोग सभी
क्यूँ मर्दों की नजरों में औरत अपनी ज़ागीर दिखे
जिस नारी को मिलता था इक देवी का सम्मान यहाँ
अब सामाजिक दर्पण
में उसकी झूठी तौक़ीर दिखे
बिसरा देते जो डाली को पतझड़ के आगाज़ बिना
मौसम कहता है फूलों में तहज़ीबी तासीर दिखे
इक-इक मजहब के खेमों में धज्जी-धज्जी जान बटी
भारत माता की सोचूँ तो गर्दिश में तकदीर दिखे
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बहुत सुंदर गजल ...!
जवाब देंहटाएंमातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
RECENT POST आम बस तुम आम हो
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ
का के प्रति आपके उद्गार मन को छूते हैं .. सभी शेर लाजवाब हैं ...
जवाब देंहटाएंबहोत खूब...!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना..भारत माता की पीड़ा को शब्दों में बखूबी व्यक्त किया है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (13-05-2014) को "मिल-जुलकर हम देश सँवारें" (चर्चा मंच-1611) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इक-इक मजहब के खेमों में धज्जी-धज्जी जान बटी
जवाब देंहटाएंभारत माता की सोचूँ तो गर्दिश में तकदीर दिखे
.... एक सच यही है ..बहुत सही
लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया
जो प्रश्न उठाए हैं ,उनका औचित्य स्वयंसिद्ध है .मातृ-दिवस के साथ इनका जुड़ाव भी है - आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएं~सादर
खूबसूरत गजल
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