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मंगलवार, 18 मार्च 2014

होली के बाद

होली खेल कर थका मांदा
अधखुली पलकों से पलंग पर लेटा था
उसका सर मेरी पेशानी पर झुका था
उसकी सुनहरी लटें चेहरे पर
गुदगुदी पैदा कर रही थी
 उसने अधरों की कोमल पंखुड़ियों
से मेरे गाल को स्पर्श किया
तो उस वक़्त मैं खुद को
दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान
समझ रहा था  
अचानक दो गर्म बूंदे मेरे मुख पर पड़ी
उसे आज जुकाम था
 अचानक उसने अपने दो दांत
मेरे गाल पर गड़ा दिए
मैं चीखा तो वो हँसने लगी
मैंने लपक कर उसे बाँहों में
भर लिया तो पूरा गीला हो गया
फिर मैं  जोर से बोला

अजी सुनती हो इसका डाइपर बदल दो 

11 टिप्‍पणियां:

  1. :-) :-)

    सो यूँ होली हो ली !!

    सादर
    अनु

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  2. वाह.. यह भी खूब रही..वात्सल्य रस का आधुनिक संस्करण

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  3. हाँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हाँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बहुत खूब........अच्छा लगा.................

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति...!
    सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाए ....
    RECENT पोस्ट - रंग रंगीली होली आई.

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार

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  6. सुंदर प्रस्तुति..होली की शुभकामनाएँ

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  7. हा हा .. सुन्दर प्रस्तुति होली के बाद कि भी ...

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  8. खूब्...होली का खुमार...अब भी बरकरार

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