होली खेल
कर थका मांदा
अधखुली
पलकों से पलंग पर लेटा था
उसका सर
मेरी पेशानी पर झुका था
उसकी
सुनहरी लटें चेहरे पर
गुदगुदी
पैदा कर रही थी
उसने अधरों की कोमल पंखुड़ियों
से मेरे
गाल को स्पर्श किया
तो उस
वक़्त मैं खुद को
दुनिया का
सबसे खुशकिस्मत इंसान
समझ रहा
था
अचानक दो
गर्म बूंदे मेरे मुख पर पड़ी
उसे आज
जुकाम था
अचानक उसने अपने दो दांत
मेरे गाल
पर गड़ा दिए
मैं चीखा
तो वो हँसने लगी
मैंने लपक
कर उसे बाँहों में
भर लिया
तो पूरा गीला हो गया
फिर मैं जोर से बोला
अजी सुनती
हो इसका डाइपर बदल दो
happy holi .
जवाब देंहटाएं:-) :-)
जवाब देंहटाएंसो यूँ होली हो ली !!
सादर
अनु
वाह.. यह भी खूब रही..वात्सल्य रस का आधुनिक संस्करण
जवाब देंहटाएंहाँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हाँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बहुत खूब........अच्छा लगा.................
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंसपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाए ....
RECENT पोस्ट - रंग रंगीली होली आई.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
हा हा हा हा, होली है।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति..होली की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंहा हा .. सुन्दर प्रस्तुति होली के बाद कि भी ...
जवाब देंहटाएंखूब्...होली का खुमार...अब भी बरकरार
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