चंदा साजन
रजत हंस पर होकर सवार
रात गगन वत्स छत पर आया,
देख वर्च लावण्या उसका
सुन री सखी वो मेरे मन भाया !!
वो समझा मैं सोई थी
मैं सुख सपनो में खोई थी
चूम वदन मेरा उसने
श्वेत किरण का जाल बिछाया,
हिय कपोत उसमे उलझाया
सुन री सखी वो मेरे मन भाया !!
खुले थे चित्त कपाट मेरे
वो दबे पाँव चला आया
अधरों की अधीरता सुन आली
साजन कह कर दिल भरमाया
सुन री सखी वो मेरे मन भाया !!
उसके बिन अब तो रह न सकुंगी
तूने देखा तो डाह करूंगी
चांदी की पालकी लाएगा
मुझे ब्याह ले जायेगा
मेरे लिए उसने गगन सजाया
पग पग तारों का जाल बिछाया
सुन री सखी वो मेरे मन भाया !!
you are welcome on this blog.you will read i kavitaayen written by me,or my creation.my thoughts about the bitterness of day to day social crimes,bad treditions .
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सोमवार, 27 सितंबर 2010
बुधवार, 15 सितंबर 2010
अब क्या है जीवन के पार
जाना है क्षितिज के पार
आ मुझको पर देदे उधार
सुदूर गगन में मै भी जाऊं
बकुल मेखला में जुड़ जाऊं .
करूँ वहां अठ्खेलियन
जहाँ स्वछंदता अपरम्पार
आ मुझको पर देदे उधार .
शशि रवि की किरने लेकर
पवन अगन के संग खेलूं
अम्बर घट को विच्छेदित कर
उदक बूँद पंखों में भर लूं
परी लोक में हो आहार .
आ मुझको पर देदे उधार .
गहन घाटिओं के गुंजन पर कान धरूँ
अपने संगीत की गूँज सुनु
सर्वोन्नत चोटी को छूकर
फिर चहुँ और आलोकन करूँ
अब क्या है जीवन के पार
आ मुझको पर देदे उधार .
जाना है क्षितिज के पार
आ मुझको पर देदे उधार
सुदूर गगन में मै भी जाऊं
बकुल मेखला में जुड़ जाऊं .
करूँ वहां अठ्खेलियन
जहाँ स्वछंदता अपरम्पार
आ मुझको पर देदे उधार .
शशि रवि की किरने लेकर
पवन अगन के संग खेलूं
अम्बर घट को विच्छेदित कर
उदक बूँद पंखों में भर लूं
परी लोक में हो आहार .
आ मुझको पर देदे उधार .
गहन घाटिओं के गुंजन पर कान धरूँ
अपने संगीत की गूँज सुनु
सर्वोन्नत चोटी को छूकर
फिर चहुँ और आलोकन करूँ
अब क्या है जीवन के पार
आ मुझको पर देदे उधार .
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