ह्रदय के उद्द्गार
माना की यहाँ जलजले बेखोफ चले आते हैं
मैं रोक नहीं सकती इन ह्रदय के उद्द्गारों को .
जो मैं ऐसा जानती ,
एक लहर समापन कर देगी मैं रेत का महल बनाती क्यूँ
साहिल भी किनारा कर लेगा मैं कागज की नाव चलातीक्यूँ .
जो मैं ऐसा जानती ,
स्वर्ण रथ पर खड़ा लुटेरा चुप चाप चला आएगा
मैं स्वप्न दिए यूँ चोखट पे सजाती क्यूँ
एक लहर समापन कर देगी मैं रेत का महल बनाती क्यूँ .
जो मैं ऐसा जानती ,
एक बदली धूप चुरा लेगी मैं भीगे केश सुखाती क्यूँ
मौसम भी बगावत कर देगा मैं सर से चुनरी सरकाती क्यूँ
एक लहर समापन कर देगी मैं रेत का महल बनाती क्यूँ !!
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