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बुधवार, 5 नवंबर 2014

दो घनाक्षरी

क्षमता से भारी-भरकम लेके सवारियाँ, खड़ी हुई स्टेशन पे लोहपथगामिनी
डिब्बों में मारामारी ठूँस-ठूँस भरके चली,भीड़ से बेहाल करे भोर हो या यामिनी
सीट नहीं मिले कोई छत पे छलांग रही ,बड़ी है निडर लाल साड़ी वाली कामिनी
दूजे बाजू उसका लाल डिब्बों का अंतराल,बनी डोर ममता की द्रुत 
गति दामिनी


रेलवे विधान वही बढती आबादी रही,यही तो विडंबना है भारत महान की
एक ओर मजबूरी दूजी ओर धोखाधड़ी , छत पे सफ़र करें चिंता नहीं जान की
लेना न टिकट चाहें चोरी से जुगाड़ करें,कहाँ इन्हें परवाह है मान सम्मान की

प्रशासन सुधार करे  रेलवे विधान में, ध्वजा तब  बुलंद हो मेरे हिन्दुस्तान की
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