नारी पत्थर सी हुई
,दिन भर पत्थर तोड़।
उसके दम से घर चले
,पैसा- पैसा
जोड़॥
राह तकें बालक कहीं ,भूखे पेट अधीर।
पूर्ण करेगी काम
ये ,पीकर थोडा नीर॥
तोड़- तोड़ के
गिट्टियां ,हुई सुबह से शाम।
पेट अगन के सामने ,नहीं जटिल ये काम॥
जीवन है संघर्षमय ,किस्मत से
बेहाल।
इन हाथों में शस्त्र हैं ,तसला और कुदाल॥
तोड़ तोड़
पत्थर करें ,उच्च भवन निर्माण।
खुद की सीली
झोंपड़ी,जिसमे निकले प्राण॥