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मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

वो पीपल का पेड़


कुछ पल मेरी छावं में 
बैठो तो सुनाऊं 
हाँ मैं ही वो अभागा 
पीपल का दरख्त हूँ 
जिसकी संवेदनाएं मर चुकी हैं 
दर्द का इतना गरल पी चुका हूँ 
कि जड़ हो चुका हूँ !
अब किसी की व्यथा से 
विह्वल नहीं होता 
मेरी आँखों में अश्कों का 
समुंदर सूख चुका है |
बहुत अश्रु बहाए उस वक़्त 
जब कोई वीर सावरकर 
मुझसे लिपट कर रोता था 
और  विषण मैं, उसके अन्दर 
सहन शक्ति की उर्जा 
का संचार करता,
अपने पंखों से उसके 
अश्रु और और स्वेद  कण
जिनमे उसकी श्रान्ति और 
उस पर हुई बर्बरता का अक्स
साफ़ दिखाई देता ,उनको  सुखाता था |
उन दिनों मैं युवा था 
और अपने देश कि मिटटी के लिए 
वफादार था 
मैं हर उस बुल -बुल से
 इश्क करता था 
जो मेरी भुजा पर बैठ कर 
देश भक्ति के गीत गाती थी |
पर वही भुजा  अगले दिन
 काट दी जाती थी 
और मैं घंटों अश्रु बहाता था |
जब भी मेरे किसी वीर जवान कि 
दर्द भरी चीख मेरे कर्ण पटल पर पड़ती 
मैं थर्रा उठता और जाने 
कितने मेरे अजीज  पत्ते
मेरे बदन से कूद कर आत्म हत्या कर लेते थे |
और मेरे हर्दय से दर्द का सैलाब 
उमड़ पड़ता |
आये दिन मेरे ही नीचे से 
मेरे वीरों की अमर आत्माओं 
को घसीट कर ले जाते थे 
और मैं विदीर्ण हर्दय से मौन 
मौन होकर शीश झुकाकर
उनके चरणों में नमन करता 
और शपथ खाता कि
भविष्य में लिखे जाने वाले 
इतिहास में ,एक प्रत्यक्ष दर्शी के रूप में 
गवाही दूंगा और आने वाली पीढ़ी को 
अपने वीरों की 
 देश भक्ति की गाथा सुनाकर 
प्रेरणा का संचार करूँगा 
आज भी मेरा पोर -पोर 
इस देश को समर्पित है 
इसी लिए आज भी  प्रतिज्ञा बध
जस का तस खड़ा हूँ ||  
(cellular jail/काला पानी जेल में पीपल के बहुत पराने जेल बनाने के वक़्त से खड़े  पेड़ को देखकर जो भाव मेरे मन में आये उनको इस रूप में आपसे सांझा कर रही हूँ )




25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मर्मस्पशी रचना..............

    आपने भावनाओं को बखूबी उकेरा है इस कविता में.....
    बहुत खूब राजेश जी.

    सादर.
    अनु

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  2. कुछ जन आज भी मेरे तन ( तने ) पर तेल चढाते हैं . फिर पूजा करते हैं . और मांगते हैं अपने स्वार्थ की पूर्ति का वरदान .
    आह ! यह इक्कीसवीं सदी है .
    बहुत मार्मिक वर्णन किया है .

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  3. उस पीपल के माध्यम से अपना दर्द आपने बखूबी बयाँ कर दिया। अद्भुत अभिव्यक्ति।

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  4. aapne to bhavuk kar diya...seedhe dil tak jaati hai aapke rachna..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  5. देशभक्तो के बलिदान को पीपल के दर्द के रूप में खूब उतारा है आपने . दिल को छू लेने वाली रचना.

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  6. पीपल का वो पेड़ मूक है अपनी व्यथा कह नहीं पाता, लेकिन आपकी रचना ने उसकी संवेदनाओं को शब्द दे दिए. बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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  7. पीपल के माध्यम से अपने दर्द को बखूबी उकेरा है..बहुत सुन्दर राजेश जी...

    जवाब देंहटाएं
  8. देश भक्ति की गाथा सुनाकर
    प्रेरणा का संचार करूँगा
    आज भी मेरा पोर -पोर
    इस देश को समर्पित है
    इसी लिए आज भी प्रतिज्ञा बध
    जस का तस खड़ा हूँ,...

    दिल को छू लेने वाली रचना.सुंदर अभिव्यक्ति ,.....

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  9. पेड़ को ज़बान देकर आपने मानो प्रकृति की पीड़ा को बयां कर दिया।

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  10. वाह राजेशजी ...जानती हैं जब मैंने यह कविता पढनी शुरू की ...सहसा मुझे उसी वृक्ष का ध्यान आया जो मैंने सेल्लुलर जेल मेंदेखा था ...और याद आयीं वे सारी बातें तो उस गाइड ने हमें बताई थीं.....कविता पढ़ते हुए वही वृक्ष आँखों के सामने खड़ा हो गया था ...और फिर आखिर में जब पढ़ा की आप उसी वृक्ष के बारे में लिख रही थी ...तो मन हर्ष से भर उठा ...क्योंकि ऐसे ही कुछ ख्याल मन को झंझोड़ गए थे ...और बहुत देर तक उस जगह उस पेड़ को देखकर आंसू अविरल बहते जा रहे थे....

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  11. this post shows what a great writer u are..
    one of your best..
    the way u personified the peepal tree is awesome !!

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  12. भावुक मन से रची गई प्रतीकात्मक रचना, मन में सिहरन पैदा कर हई, वाह !!!

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  13. वीरों की गाथाएँ सुनाने के लिए प्रतिबद्ध पीपल का वृक्ष. बहुत सुंदर रचना.

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  14. बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना..

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  15. पीपल के नए पत्ते आ गये हैं...और आज ये कविता पढ़ने को मिली...कुछ वृक्ष ऐसे होते हैं जिनके सामने सदियाँ घटतीं हैं...आपकी सहृदयता और ज़ज्बे को सलाम...

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  16. bahut bahut bahut hi umda rachna,is ke alawa kuch kah nahin paa rhi,aap ki rachna ne nishbd kar diya hai

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  17. ओह ! इतनी सूक्ष्मता से आपने वीरों और पीपल-गाथा को कह दिया.. आह !

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  18. और मैं विदीर्ण हर्दय से मौन
    मौन होकर शीश झुकाकर
    उनके चरणों में नमन करता
    और शपथ खाता कि
    भविष्य में लिखे जाने वाले
    इतिहास में ,एक प्रत्यक्ष दर्शी के रूप में
    गवाही दूंगा और आने वाली पीढ़ी को
    अपने वीरों की
    देश भक्ति की गाथा सुनाकर
    प्रेरणा का संचार करूँगा ...

    Very touching creation........
    Thanks ma'am.

    .

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